हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक़, हुज्जतुल-इसलाम वल मुस्लेमीन मुहम्मद महदी मांदगारी ने एक टी.वी. प्रोग्राम में “मिलाद से बेअसत तक सीरत ए रसूल ए अकरम (स) पर शक़ व शुबहात के जवाबात” के शीर्षक से आयोजित नश्स में बात-चीत के दौरान सूर ए हदीद की आयत नंबर 20 की तरफ इशारा करते हुए कहा: अल्लाह तआला इस आयत मुबारका के पहले हिस्से में फ़रमाता हैः “जान लो कि दुनिया की ज़िन्दगी खेल तमाशा, ज़ाहिरी ज़ेब व ज़ीनत, आपस का फ़ख़्र व मुबाहात और माल व औलाद में एक दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश है, इसके सिवा कुछ नहीं।” अल्लाह तआला ने इस आयत में दुनिया की ज़िन्दगी की कुछ ख़ासियतें बयान की हैं जो इंसानों में उम्र के मुख़्तलिफ़ हिस्सों में सबसे ज़्यादा आकर्शित होती हैं।
उन्होंने रसूल ए अकरम (स) के वजूद को इंसानियत के लिए एक पूर्ण मॉडल क़रार दिया और कहा: पैग़ंबर ए अकरम (स) का सबसे बड़ा मोजज़ा यह है कि आप जाहिलियत से भरे समाज और सख़्त तरीन हालात में मबऊस हुए और उसी समाज में ऐसी शख़्सियतों की तरबियत की जो इंसानियत की ज़िन्दगी के लिए नमूना बन गईं।
हुज्जतुल इसलाम वल मुस्लेमीन मांदगारी ने कहा: अगर हम नौजवानों से बेहतर सम्पर्क स्थापित करना चाहते हैं तो इस मैदान में सबसे महत्वपूर्ण तत्व व्यवहार में खूबसूरती को बरूए कार लाना है। इसका मतलब यह है कि अगर हम एक नौजवान से, जो जज़्बात से भरपूर और इज़्ज़त, तक़रीम और मारफ़त का प्यासा है, बेहतर ताल्लुक़ बनाना चाहते हैं तो हमें उसके तक़ाज़ों के मुताबिक़ अमल करना चाहिए।
हौज़ा इल्मिया के इस उसताद ने कहा: नौजवानों से बात-चीत के लिए सबसे पहले उनकी खूबियों को मद्दे नज़र रखना चाहिए और उन्हीं की बुनियाद पर उनकी तसदीक करनी चाहिए।
उन्होंने कहा: याद रहे कि एक नौजवान इज़्ज़त व तक़रीम का प्यासा होता है और उससे बात-चीत के लिए उसी दरवाज़े से दाख़िल होना चाहिए। रसूल ए अकरम (स) अपने इर्द-गिर्द के इंसानों, ख़ास तौर पर नौजवानों के साथ रिश्ते में सबसे पहले उनकी तसदीक़ और तक़रीम की तरफ़ जाते थे।
हुज्जतुल इसलाम वल मुस्लेमीन मांदगारी ने आज़ादी के मौज़ू पर बात करते हुए कहा: यह जानना ज़रूरी है कि मुतलक़ आज़ादी वजूद नहीं रखती, क्योंकि इंसान एक मोहताज वजूद के तौर पर पैदा किया गया है। इस सिलसिले में यह देखना चाहिए कि इंसान किन जगहों पर मोहताज है और उसकी ज़रूरतों को पूरा करने का ज़रिया कहाँ है? जैसा कि कहा गया, इन ज़रूरतों को पूरा करने के दो ज़रिये हैं — एक कहता है कि मैं तुम्हारी ज़रूरतों को ईमानदारी से पूरा करता हूँ और बिलकुल दुरुस्त तरीक़े से ज़मानत देता हूँ। लेकिन दूसरा कहता है कि मैं झूठ और फ़रेब से तुम्हारी ज़रूरतें पूरी करता हूँ।
उन्होंने कहा: अगर हम अल्लाह की बंदगी करें तो बादशाह बन जाएँगे। जो शख़्स अल्लाह का बंदा हो, वह शोहरत, दौलत और ताक़त की क़ैद से आज़ाद होता है।
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